द्वेष का मर्म
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” सकारात्मक चिंतन “
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आत्म अवलोकनार्थ।
सम्मानीय आत्मजन,
शुभ दिवस।
‘द्वेष का मर्म ‘
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(01) जिस मनुष्य का मन व ह्रदय द्वेष की अग्नि से धधकता रहता है,वह मनुष्य रात्रिकालीन निद्रा सुख से भी वंचित हो जाता है। विदुर महाराज
(02)द्वेष व कपट को त्याग कर संगठित होकर जनसेवा करना हम भारत के लोगों की प्राथमिकता होना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद
(03)द्वेष बुद्धि का उन्मूलन द्वेष से न होकर प्रेम शक्ति से ही संभव है। विनोबा भावे
(04)हमे जिस मनुष्य से द्वेष है,उससे मधुर वाणी में वार्ता करना चाहिए।
चाणक्य
(05)यह मनुष्य मनोविज्ञान है कि वह जिससे द्वेष करता है,तो उसमें उसे साधुता,बुद्धिमता,
विद्वता अर्थात कुछ भी अच्छाई के दर्शन नहीं होते है;और जिससे वह प्रेम करता है,उसमें शुभ ही शुभ के दर्शन होते हैं,अर्थात कोई दोष दृष्टि गोचर नहीं होता है ।
महाभारत
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Regards:Iqbal Khan Gauri,Retired District Judge,M.P.
Now:Law adviser and Human duties Activist,Ujjain.
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