ज़ालीम बादशाहों को हुसैनी ख़ातीर में लाते नहीं हालात की आंधीयों से गुलामे हुसैन घबराते नहीं अपने लहू से सींचा है मेरे हुसैन ने इस चमन को ये बाग़-ए-हुसैन है इसके फुल कभी मुरझाते नहीं
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हुसैनी सय्यद आशिक अली की बेबाक कलम से जिसको फतवा देना है दो ये उनको जवाब हे जो हर चीज़ में बिद्दत शिर्क करके अपनी रोटी सेकते है काम तो बेहद अच्छा हो रिया है बाकी इसका सीधा असर इमाम हुसैन से मोहब्बत कम हो रही है हमारी नस्लों में दरअसल जिंदा घोड़े पर इस्लामिक लिबास पहन कर गमे हुसैन का इजहार भी कर सकते है हम लंगर हलीम शरबत को बाहर चौराहे पर आम कर सकते है ये जितने ज्ञान बाट रहे है क्या ये रोजा रखेंगे या रात भर इबादत करते हैं जरा ध्यान देना ऐसे मुनाफिको पर शरबत हलीम गरीबों को सदका हद से ज्यादा और सबसे बड़ी बात है जुल्म के खिलाफ उठना जैसा कि इमाम हुसैन उठे थे बाकी हम तो ठहरे मुर्दार तो गैर मुस्लिम का डर जो बैठा है दिल में घोड़े बर्राक बंद करते करते हम इमाम हुसैन से मोहब्बत ही भूल गए हैं बाकी इस घटिया सोच से ना तो इमाम हुसैन को कोई फर्क पढ़ता है और ना ही उनके मानने वालो को आप लोग इमाम हुसैन के लिए मोहब्बत ना भी दिखाओ तो कोई दिक्कत नही है आज भी इमाम हुसैन r.j… से मोहब्बत कई मुसलमान करते हैं और कई देश<br>बस केसे भी जुलूस बंद करदो हेनी अरे मुसलमानों की साफ़ में बैठे भेड़ियों गलत को तो तुम ने पकड़ लिया ही है हम भी गलत मानते हैं पर जो सही है वो तो करो <br><br>*जब इमाम हुसैन ने यजीदियो के सामने सर कटा दीया झुकाया नही*<br>*तो उनके मानने वाले भी पीछे नहीं हटेंगे*<br><br>मुझे क्या फ़िक्र, हुसैन जन्नत का इमाम होगा दम-ए-आखिर लबों पर हुसैन का नाम होगा..थामे रहो तुम युँही दामन मेरे हुसैन का देखना एक रोज़ वक्त भी तुम्हारा गुलाम होगा..<br><br>जुल्म के खिलाफ़ जितनी देर से उठोगे उतनी ही बड़ी कुर्बानी देना पड़ेगी हजरत मोला अली की ज़बान<br><br>हक़ का परचम, वजूद-ए-हुसैन से बुलंद हैं बातील के आगे सर झुकाना उसे नापसंद हैं..खून से अपने सींचा हैं सच्चाई का दरख़्त ज़माना आज तक हुसैन का अहसानमंद हैं..<br><br>करबला की वादीयों में कुछ रोज़ क़याम हो आँखों में अश्क और लबों पर सलाम हो…वहाँ खड़े हो कर पढू मैं कभी फ़ातीहा हुसैन के कदमों में ये ज़िन्दगी तमाम हो..<br>
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